Skip to content

अडानी विवाद: संसद में चर्चा की मांग और भारत की साख पर उठते सवाल

  • News

संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस द्वारा अडानी समूह से जुड़े गंभीर आरोपों पर चर्चा की मांग ने देश में एक बड़ा राजनीतिक और आर्थिक मुद्दा खड़ा कर दिया है। यह मामला सिर्फ एक कारोबारी समूह से जुड़े आरोपों का नहीं है, बल्कि इसमें भारत की वैश्विक साख, लोकतांत्रिक संस्थाओं की पारदर्शिता और शासन की जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

कांग्रेस की मांग: क्या सरकार जवाब देगी?

कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद मणिकम टैगोर, रणदीप सुरजेवाला और मनीष तिवारी ने लोकसभा और राज्यसभा में कार्य स्थगन नोटिस देकर अडानी समूह पर लगे अमेरिकी आरोपों पर चर्चा की मांग की। इन आरोपों में अडानी समूह पर $265 मिलियन की रिश्वत और अन्य वित्तीय गड़बड़ियों का आरोप लगाया गया है। टैगोर ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए उनके और अडानी के संबंधों पर जवाब मांगा है।

सुरजेवाला ने राज्यसभा में दिए नोटिस में सार्वजनिक खरीद प्रक्रियाओं में कथित भ्रष्टाचार, नियामकीय खामियों और लोकतांत्रिक संस्थाओं की गिरती साख पर चिंता जताई। उन्होंने जॉइंट पार्लियामेंटरी कमेटी (JPC) द्वारा जांच की मांग की, ताकि इन आरोपों के असर और भारत की संस्थागत विश्वसनीयता पर रोशनी डाली जा सके।

अडानी समूह की सफाई और विवाद की जड़

अडानी समूह ने अमेरिकी न्याय विभाग (DoJ) और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज किया है। समूह ने स्पष्ट किया कि उनके संस्थापक गौतम अडानी, उनके भतीजे सागर अडानी और अन्य अधिकारी सीधे तौर पर रिश्वतखोरी के आरोपों में शामिल नहीं हैं।

हालांकि, आरोपों की प्रकृति और इनसे जुड़े अन्य व्यक्तियों के नाम इस मामले को उलझा रहे हैं। Azure Power और अन्य संगठनों से जुड़े व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए हैं, लेकिन अडानी अधिकारियों को इन मामलों में “साजिश” के तहत जोड़ा गया है।

राजनीतिक विमर्श का विस्तार

इस विवाद ने सिर्फ अडानी समूह के कामकाज पर सवाल नहीं उठाए, बल्कि यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। विपक्ष इसे सरकार की नीतियों और कारोबारी पारदर्शिता पर हमला करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। कांग्रेस का तर्क है कि इस मामले में सरकार की चुप्पी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचा सकती है।

दूसरी ओर, सरकार ने इस मामले में अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन यह सवाल जरूर उठ रहा है कि क्या यह मामला संसद के भीतर चर्चा के लिए उपयुक्त होगा या इसे राजनीतिक मंचन तक सीमित रखा जाएगा।

अंतरराष्ट्रीय संदर्भ और आर्थिक प्रभाव

यह विवाद उस समय सामने आया है जब अडानी समूह अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी से विस्तार कर रहा है। अफ्रीका, बांग्लादेश, श्रीलंका, इज़राइल, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में समूह ने बड़े निवेश किए हैं। लेकिन DoJ के आरोपों के बाद समूह को $55 बिलियन से अधिक की बाजार पूंजी का नुकसान हुआ है।

इससे न केवल समूह की साख को धक्का लगा है, बल्कि यह भारतीय कारोबारी माहौल पर भी सवाल खड़े करता है। क्या भारत वैश्विक निवेशकों के लिए एक पारदर्शी और भरोसेमंद बाजार बना हुआ है, या यहां बड़े कॉरपोरेट्स के साथ जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप इसे कमजोर कर रहे हैं?