अमित शाह का संविधान पर प्रहार: क्या राजनीति संविधान की गरिमा को कमजोर कर सकती है?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का राज्य सभा में भाषण देश की राजनीतिक चर्चा में एक नया मोड़ लाया है। उन्होंने संविधान के 75 साल पूरे होने के अवसर पर कांग्रेस पार्टी और उसकी नीतियों पर हमला करते हुए कई अहम बिंदुओं को उठाया। शाह का भाषण न केवल संविधान संशोधनों की प्रक्रिया को लेकर था, बल्कि इसमें कांग्रेस पर राजनीतिक आरोपों की झलक भी देखी गई।

संविधान संशोधन: एक प्रतिस्पर्धी परंपरा

अमित शाह ने स्पष्ट किया कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही संविधान में संशोधन कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा ने पिछले 16 वर्षों में 22 संविधान संशोधन किए हैं, जबकि कांग्रेस ने 55 वर्षों के शासन के दौरान 77 बार संशोधन किए। इस प्रतिस्पर्धा में सवाल यह उठता है कि क्या हर संशोधन सच्ची लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत किए गए थे? क्या राजनीतिक फायदे के लिए संविधान में बदलाव करना लोकतंत्र की गरिमा को खतरे में डालता है?

शाह ने राहुल गांधी पर भी परोक्ष हमला करते हुए कहा कि एक 54 वर्षीय नेता, जो खुद को युवा बताता है, संविधान को ले कर इधर-उधर घूमता रहता है और कहता है कि वह संविधान बदल देंगे। यह टिप्पणी न केवल राहुल गांधी के व्यक्तित्व पर एक प्रहार थी, बल्कि यह संविधान के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा के सवाल भी खड़े करता है। क्या किसी भी पार्टी का संविधान को बदलने का दावा लोकतंत्र की प्रक्रिया को कमजोर करता है?

लोकतंत्र की जड़ें और संप्रभुता

अमित शाह ने इस बात पर गर्व जताया कि भारत का लोकतंत्र रक्तपात के बिना स्थिरता के साथ स्थापित हुआ है। उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र सफल नहीं हुआ, लेकिन भारत ने यह संभव किया। क्या यह वास्तव में सही है कि हमने लोकतंत्र की स्थिरता को इतनी आसानी से स्थापित किया है? यह गौर करने की आवश्यकता है कि लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप तभी होता है जब सभी विचार-विमर्श खुले हों, सभी संस्थाएं स्वतंत्र हों, और हर व्यक्ति संविधान के तहत समान अधिकारों के साथ व्यवहार किया जाए।

कांग्रेस की वोट बैंक राजनीति और मुस्लिम महिलाओं के अधिकार

अमित शाह ने कांग्रेस पर मुस्लिम महिलाओं के साथ वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा ने ‘त्रैतीय तलाक’ के अंत के साथ मुस्लिम महिलाओं को अधिकार प्रदान किए। यह सही कदम हो सकता है, लेकिन क्या यह सिर्फ वोट बैंक के एजेंडे के तहत किया गया है या इसमें सच्ची सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता शामिल है?

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