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भारत में औद्योगिक विकास की राह: श्रमिक आवास की चुनौतियां और समाधान

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जब भी भारत के आर्थिक परिदृश्य पर नजर डालता हूं, कृषि क्षेत्र का योगदान एक बड़ी विडंबना के रूप में सामने आता है। देश के 46% श्रमिक कृषि में लगे हैं, लेकिन यह केवल 18% GDP का हिस्सा है। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि कृषि अब उतनी उत्पादक नहीं रही, जितना हमारी आर्थिक आवश्यकताओं के लिए होना चाहिए।

लेकिन समाधान क्या है? एकमात्र उत्तर है निर्माण और सेवा क्षेत्र। ये क्षेत्र न केवल अधिक उत्पादक हैं, बल्कि ये अकुशल श्रमिकों को बड़ी संख्या में रोजगार देने की क्षमता रखते हैं। वास्तव में, निर्माण और सेवा क्षेत्र में नौकरियां कृषि की तुलना में 3-6 गुना अधिक उत्पादक होती हैं।

औद्योगिक क्लस्टर्स और श्रमिकों की कमी

औद्योगिक क्लस्टर्स रोजगार सृजन के प्रमुख केंद्र बन सकते हैं, लेकिन इनकी क्षमता का पूरा लाभ उठाने के लिए श्रमिकों की पर्याप्त आपूर्ति जरूरी है। रिपोर्ट से पता चलता है कि इन क्लस्टर्स के आसपास के गांवों और कस्बों से आने वाले श्रमिकों की संख्या अपर्याप्त है।

इसकी एक बड़ी वजह है श्रमिक आवास की कमी। मौजूदा श्रमिक आवास, ज्यादातर अनधिकृत झुग्गियों और निम्न स्तर की बस्तियों तक सीमित हैं। इन खराब स्थितियों में रहने से श्रमिक औद्योगिक क्लस्टर्स के पास बसने से हिचकते हैं, जिससे श्रमिकों की कमी और उत्पादकता में गिरावट आती है।

क्यों है श्रमिक आवास इतना महत्वपूर्ण?

श्रमिक आवास केवल रहने की जगह नहीं है; यह आर्थिक विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। अगर श्रमिक बेहतर आवास सुविधाओं के साथ औद्योगिक क्षेत्रों के पास बसते हैं, तो वे अधिक कुशलता से काम कर सकते हैं। इससे न केवल उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि भारत वैश्विक स्तर पर निर्माण निर्यात में भी बेहतर प्रतिस्पर्धा कर सकेगा।

निजी क्षेत्र के सामने चुनौतियां

हालांकि निजी क्षेत्र श्रमिक आवास की समस्या सुलझाने में योगदान देना चाहता है, लेकिन उसके रास्ते में कई बाधाएं हैं:

  • जोनिंग रेगुलेशन: श्रमिक आवास के लिए आवश्यक क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति नहीं मिलती।
  • जटिल भवन उपनियम: इनसे परियोजनाओं में देरी और लागत में वृद्धि होती है।
  • उच्च परिचालन शुल्क: जीएसटी और वाणिज्यिक संपत्ति दरें निवेश को हतोत्साहित करती हैं।

समाधान का रास्ता

रिपोर्ट में कुछ सुधार सुझाए गए हैं, जो इस समस्या का समाधान कर सकते हैं:

  1. मिश्रित उपयोग ज़ोनिंग: सभी क्षेत्रों में श्रमिक आवास की अनुमति दी जाए।
  2. सरल भवन उपनियम: लागत कम करने और समय बचाने के लिए।
  3. जीएसटी और अन्य शुल्कों से छूट: श्रमिक आवास को किफायती और निवेश के अनुकूल बनाने के लिए।
  4. आवास को बुनियादी ढांचे का दर्जा: इससे सरकार वित्तीय सहायता और सब्सिडी प्रदान कर सकती है।

सरकार और निजी क्षेत्र का तालमेल

अगर सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर काम करें, तो ये समस्याएं हल हो सकती हैं। सरकार रेंटल वाउचर्स और सब्सिडी देकर श्रमिकों को सस्ते आवास उपलब्ध करा सकती है। इसके अलावा, श्रमिक आवास को औद्योगिक विकास के लिए एक प्राथमिकता के रूप में देखना होगा।