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हमारा देश अब बूढ़ा हो रहा है! क्या प्रजनन दर में गिरावट भारत को बदल देगी?

दुनिया भर में बच्चों की संख्या घट रही है। The Telegraph के यूट्यूब चैनल के मुताबिक, यह “जनसांख्यिकीय सर्दी” है, जो आगे चलकर और ठंडी होने वाली है। वैश्विक प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) उस स्तर से नीचे जाने की कगार पर है, जो जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

यहाँ तक कि भारत, जो अब दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, भी रिप्लेसमेंट रेट से नीचे प्रजनन दर रिकॉर्ड कर रहा है। भविष्यवाणियों के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) 2050 तक 1.29 और 2100 तक 1.04 तक गिर सकती है।


TFR और रिप्लेसमेंट रेट क्या हैं?

TFR (कुल प्रजनन दर) वह औसत संख्या है, जितने बच्चे एक महिला अपने जीवनकाल में जन्म दे सकती है। यह सूचकांक नीतियों की योजना बनाने में मदद करता है, जैसे कि जनसंख्या वृद्धि, खाद्यान्न उत्पादन, श्रम शक्ति और प्रवास नीति।

रिप्लेसमेंट रेट वह स्तर है जिस पर एक पीढ़ी खुद को अगली पीढ़ी से ठीक-ठीक बदल देती है। औसतन 2.1 बच्चे प्रति महिला को रिप्लेसमेंट रेट माना जाता है।

भारत की जनसंख्या 2060 के मध्य तक 1.7 अरब पर पहुंचकर स्थिर होने की संभावना है, लेकिन इसके बाद गिरावट शुरू हो जाएगी। यह गिरावट भारत को चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के रास्ते पर ले जा सकती है, जहां जनसंख्या पहले से घट रही है।


भारत में प्रजनन दर में गिरावट: प्रमुख कारण

भारत में जनसंख्या वृद्धि के धीमे होने का सबसे बड़ा कारण TFR में गिरावट है। The Telegraph की रिपोर्ट के अनुसार:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं औसतन 2.1 बच्चे जन्म देती हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 1.6 है।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और गर्भनिरोधकों की बेहतर उपलब्धता के साथ, महिलाएं अपने पहले बच्चे के जन्म में अधिक समय ले रही हैं।
  • दक्षिण और पश्चिम भारत जैसे राज्यों में प्रजनन दर पहले ही रिप्लेसमेंट रेट से नीचे पहुंच चुकी है।

विकासशील देशों में, जैसे-जैसे समृद्धि बढ़ती है, महिलाओं की प्रजनन दर में गिरावट होती है। भारत में शहरी महिलाएं, ग्रामीण महिलाओं की तुलना में औसतन 1.5 साल बाद पहला बच्चा पैदा करती हैं।


चिंता का विषय: बूढ़ी होती आबादी

भारत आज भी युवा देश है, जहां आधी से अधिक जनसंख्या 28 साल से कम आयु की है। लेकिन The Telegraph के मुताबिक, भारत तेजी से बूढ़ा हो रहा है।

2060 के दशक के मध्य तक, भारत की जनसंख्या वृद्धि शून्य हो जाएगी, और 2100 तक यह नकारात्मक हो सकती है। इस दौरान, बच्चों के जन्म की तुलना में बुजुर्गों की मृत्यु अधिक होने लगेगी।

एक बूढ़ी होती हुई आबादी कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां लाती है, जैसे श्रम बल में कमी और पेंशन योजनाओं का दबाव।


समाधान क्या है?

नीतिनिर्माताओं को अब से ही कदम उठाने होंगे। The Telegraph ने सुझाव दिया कि भारत को स्वीडन और डेनमार्क जैसे देशों से सीखना चाहिए, जो नई पीढ़ियों को समर्थन देने के लिए नीतियां बना रहे हैं।

  • परिवारों के लिए आर्थिक सहायता
  • मातृत्व और पितृत्व अवकाश
  • बच्चों की देखभाल की बेहतर सुविधाएं

वैश्विक संदर्भ: क्या भारत तैयार है?

1950 में दुनिया की औसत प्रजनन दर 4.8 थी, जो आज 2.2 तक आ गई है। The Telegraph के अनुसार, 2100 तक यह दर 1.6 तक गिरने का अनुमान है।

भारत जैसे देश, जो आज सबसे अधिक जन्म दर वाले क्षेत्रों में से एक हैं, 2100 तक केवल 7% वैश्विक जन्म में योगदान करेंगे।

भारत को इन गिरते आंकड़ों के बीच संतुलन साधना होगा। प्रश्न यह है कि क्या भारत अपनी “जनसंख्या कहानी” को विकास और स्थिरता की दिशा में मोड़ सकेगा?

भारत की घटती जनसंख्या: अवसर या चुनौती?

दुनिया की बदलती जनसांख्यिकी का असर हर देश पर अलग-अलग रूप में पड़ता है। The Telegraph के यूट्यूब चैनल के रिपोर्ट को पढ़ते हुए मेरे मन में कई विचार और भाव उठे। क्या यह सचमुच चिंता का विषय है, या यह एक ऐसा अवसर है जिसे सही दिशा में मोड़ा जा सकता है?

भारत में TFR का रिप्लेसमेंट रेट से नीचे गिरना, पहली नजर में चिंताजनक लग सकता है। लेकिन जब इसे विकासशील देशों के संदर्भ में देखा जाए, तो यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जैसे-जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक समृद्धि में सुधार होता है, महिलाएं अपने परिवारों के आकार को सीमित करने का निर्णय लेती हैं।

मुझे लगता है कि यह अवसर है कि हम अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करें। अगर आबादी स्थिर रहती है या घटती है, तो इसका मतलब है कि हमें अपने मौजूदा संसाधनों को अधिक समानता और स्थिरता के साथ वितरित करने का मौका मिलता है।

हालांकि, इस गिरावट का एक दूसरा पहलू भी है। जब आबादी का बड़ा हिस्सा बुजुर्ग होगा, तो कार्यबल कम हो जाएगा। The Telegraph के अनुसार, 2060 के दशक तक भारत की जनसंख्या वृद्धि रुक जाएगी और यह गिरावट में बदल जाएगी। यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि हमारे देश में पेंशन योजनाएं और वृद्धावस्था कल्याण योजनाएं अभी उस स्तर पर नहीं हैं, जहां उन्हें होना चाहिए।

मुझे यह भी लगता है कि भारतीय परिवारों की संरचना में बदलाव इसे और कठिन बना सकता है। पहले बड़े परिवारों में, बुजुर्गों की देखभाल साझा जिम्मेदारी होती थी। लेकिन आज, छोटे परिवार और अलग रहने की प्रवृत्ति इस जिम्मेदारी को और जटिल बना सकती है।

मेरा विचार: संतुलन साधने का समय

मुझे लगता है कि भारत को The Telegraph की रिपोर्ट में सुझाए गए स्कैंडिनेवियाई मॉडल जैसे कदमों को अपनाने की जरूरत है। युवा परिवारों को प्रोत्साहन देना और महिलाओं को काम और परिवार के बीच संतुलन साधने में मदद करना एक बड़ा कदम हो सकता है।

साथ ही, हमें “वृद्ध समाज” की तैयारियों पर भी ध्यान देना चाहिए। सामाजिक सुरक्षा योजनाएं, पेंशन सिस्टम का विस्तार और हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश जरूरी है।

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