
दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच राजनीति का तापमान बढ़ता जा रहा है। नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में मतदाता सूची में हेरफेर के आरोपों से लेकर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप, यह चुनाव केवल एक राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि लोकतंत्र की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है।
मतदाता सूची विवाद: किसके दावे सही?
चुनाव आयोग द्वारा दिल्ली की अद्यतन मतदाता सूची जारी करने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) ने नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में “बड़े पैमाने पर मतदाता हटाने की साजिश” का आरोप लगाया। मुख्यमंत्री आतिशी ने मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखकर मतदाता हटाने की प्रक्रिया की दोबारा जांच की मांग की। उन्होंने दावा किया कि जब मतदाता हटाने के अनुरोध 2% से अधिक होते हैं, तो चुनाव पंजीकरण अधिकारी को व्यक्तिगत सत्यापन करना अनिवार्य है, लेकिन इस नियम का पालन नहीं किया गया।
दूसरी ओर, भाजपा ने आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया कि आप नकली मतदाताओं को पंजीकृत करने में असफल रही है। भाजपा के अनुसार, “फर्जी मतदाता” जोड़ने के आप के प्रयासों पर चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाई, जिससे आप बौखला गई है।
राजनीतिक हस्तक्षेप और प्रशासनिक अड़चनें
नई दिल्ली के जिला निर्वाचन अधिकारी (DEO) सनी के सिंह ने “राजनीतिक हस्तक्षेप” और “कार्यात्मक बाधाओं” को लेकर अपनी चिंताओं को सार्वजनिक किया। उन्होंने आरोप लगाया कि आप नेताओं द्वारा उनके कार्यालय में दबाव बनाया गया और “निर्वाचन सूची के विरोधकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी” मांगने की कोशिश की गई।
मुख्यमंत्री आतिशी द्वारा बगैर पूर्व सूचना के बैठक बुलाने और अनिर्दिष्ट एजेंडे पर चर्चा करने से डीईओ ने असुविधा जताई। इस मामले पर आप ने पलटवार करते हुए कहा कि यह “चुनाव आयोग की निष्पक्षता” पर सवाल उठाने का प्रयास है।
चुनाव प्रचार: काम बनाम आरोपों की राजनीति
इस चुनावी समर में आप और भाजपा के बीच काम और आरोपों की राजनीति प्रमुख मुद्दा बनकर उभरी है। आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने इसे “काम की राजनीति बनाम गाली की राजनीति” का चुनाव बताया है। आप ने अपने विकास कार्यों, जैसे मुफ्त बिजली और शिक्षा सुधार, को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया है।
दूसरी ओर, भाजपा ने आप सरकार पर भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अक्षमता का आरोप लगाया है।
नई दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला
नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भाजपा के परवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित मैदान में हैं। केजरीवाल ने इस सीट से 2013, 2015 और 2020 में लगातार तीन बार जीत हासिल की है।
कांग्रेस, जो पिछले कुछ वर्षों में कमजोर नजर आई है, इस बार संदीप दीक्षित के जरिए अपनी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है। भाजपा का दावा है कि आप के “वोट बैंक” को कमजोर कर वह इस बार नई दिल्ली सीट पर जीत हासिल करेगी।
चुनाव आयोग और लोकतंत्र की परीक्षा
इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि यह चुनाव सिर्फ मतों की लड़ाई नहीं, बल्कि लोकतंत्र की साख की परीक्षा है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता और राजनीतिक दलों की नैतिकता दोनों ही जनता की नजर में हैं।
अंतिम विचार
चुनावों में आरोप-प्रत्यारोप और मतदाता सूची जैसे मुद्दे आम हो सकते हैं, लेकिन जब इनसे लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हों, तो यह चिंता का विषय बन जाता है। दिल्ली के इस चुनाव में मतदाता न केवल उम्मीदवारों के प्रदर्शन पर, बल्कि उनकी ईमानदारी और पारदर्शिता पर भी वोट डालेंगे।
आखिरकार, यह चुनाव दिल्ली की जनता के फैसले पर निर्भर करेगा कि वे “काम की राजनीति” को चुनते हैं या “आरोपों की राजनीति” को।