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JPC की मांग पर अडिग विपक्ष: अडानी विवाद और संवैधानिक चिंताएं

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आज संसद का सत्र शुरू हुआ। हर बार की तरह, इस बार भी विपक्ष ने अपने तेवर साफ़ कर दिए। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने विपक्ष के एजेंडे को स्पष्ट करते हुए कहा कि वे अडानी मामले में संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की मांग से पीछे नहीं हटेंगे। यह मांग अब और भी महत्वपूर्ण हो गई है, खासतौर पर अमेरिका में अडानी से जुड़े कथित रिश्वतखोरी के मामले को लेकर।

मैं यहां विपक्ष के इस रुख को एक व्यापक नजरिए से देखता हूं। संसद के सत्र की शुरुआत ही इस तीखे एजेंडे से हुई, जहां सिर्फ अडानी ही नहीं, बल्कि मणिपुर और नागालैंड जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी चर्चा की मांग उठी। और जैसा कि जयराम रमेश ने कहा, उत्तर प्रदेश में हालिया सांप्रदायिक हिंसा ने विपक्ष के लिए एक और बड़ा मुद्दा खड़ा कर दिया है।

JPC: क्या यह सचमुच समाधान है?
जयराम रमेश का कहना है कि JPC जरूरी है, क्योंकि अमेरिका की अदालतों में जो आरोप लगे हैं, वे इस मांग को और मज़बूत करते हैं। लेकिन क्या सचमुच JPC देश को जवाब दे पाएगी, या यह सिर्फ राजनीतिक दबाव बनाने का औजार बनकर रह जाएगी?

संविधान और राजनीति का टकराव
जयराम रमेश ने एक और मुद्दा उठाया जो मुझे विचार करने पर मजबूर करता है। उन्होंने दावा किया कि 30 नवंबर 1949 को, जब हमारा संविधान अपनाया गया था, उसी के कुछ दिन बाद RSS के मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र ने संविधान की आलोचना की थी। उनका कहना है कि इस आलोचना का आधार यह था कि संविधान ‘मनुस्मृति’ से प्रेरित नहीं था। यह आरोप न केवल ऐतिहासिक संदर्भ में बल्कि आज के राजनीतिक माहौल में भी प्रासंगिक हो जाता है, जब संविधान को लेकर हर पक्ष अपनी-अपनी व्याख्या कर रहा है।

संविधान की 75वीं वर्षगांठ और बाबा साहेब का योगदान
जयराम रमेश ने याद दिलाया कि 25 नवंबर 1949 को बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान सभा में ऐतिहासिक भाषण दिया था। यह भाषण हमें यह समझने में मदद करता है कि संविधान का मूल उद्देश्य क्या था। यह एक ऐसा दस्तावेज़ है, जो विविधताओं से भरे इस देश को एकता में पिरोता है। लेकिन क्या आज हमारी राजनीति इस भावना को बरकरार रख पा रही है?

INDIA गठबंधन और अडानी मुद्दा
INDIA गठबंधन के नेताओं ने संसद सत्र शुरू होने से पहले बैठक की और अडानी मामले में चर्चा की मांग रखी। विपक्ष का कहना है कि देश को ऐसे कार्टेल और एकाधिकार से बचाने की जरूरत है, जो देश की आर्थिक संरचना को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके बदले वे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और रोजगार के अवसरों की बात करते हैं। यह सोचने की बात है कि क्या हमारी नीतियां इन मूल्यों की दिशा में आगे बढ़ रही हैं?

संसद का स्थगन: क्या हासिल होगा?
आज लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को स्थगित कर दिया गया। अब सत्र 27 नवंबर को दोबारा शुरू होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन बहसों से देश को कुछ ठोस मिलेगा? या फिर ये केवल राजनीतिक दलों की एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की जगह बनकर रह जाएंगी?

संसद की कार्यवाही में जो मुद्दे उठते हैं, वे केवल राजनीति तक सीमित नहीं होते। ये देश की दिशा तय करते हैं। इसलिए, यह देखना महत्वपूर्ण है कि विपक्ष की मांगें और सरकार की नीतियां देश के आम नागरिकों के जीवन को कैसे प्रभावित करती हैं।

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