संभल में शाही जामा मस्जिद के कोर्ट-ऑर्डर्ड सर्वे को लेकर हुए विवाद ने हिंसा का रूप ले लिया। इस मामले में समाजवादी पार्टी (SP) के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क और स्थानीय SP विधायक इकबाल महमूद के बेटे सोहेल इकबाल का नाम सामने आया है। पुलिस ने दोनों पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है।
क्या है मामला?
सोमवार को संभल पुलिस ने बताया कि कोर्ट के आदेश पर किए जा रहे मस्जिद सर्वे के दौरान हिंसा हुई, जिसमें 4 लोगों की मौत हो गई और 24 पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी समेत कई लोग घायल हो गए। अब तक 25 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
संभल के डिविजनल कमिश्नर अंजनय कुमार सिंह ने बताया कि हिंसा के दौरान देसी हथियारों से चली गोलियों से मौतें हुईं। इस मामले में कुल 7 एफआईआर दर्ज की गई हैं।
पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार ने कहा, “MP जिया-उर-रहमान बर्क के बयानों ने लोगों को उकसाया। उन्होंने ‘जामा मस्जिद की हिफाजत’ की बात कही, जिससे भीड़ ने हिंसा शुरू की।”
कोर्ट का आदेश और दूसरा सर्वे
स्थानीय कोर्ट ने जामा मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया था। याचिका में दावा किया गया था कि यह मस्जिद एक प्राचीन मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी, जिसे 1529 में मुगल सम्राट बाबर ने तोड़ा था। यह मस्जिद का दूसरा सर्वे था; पहला सर्वे पिछले मंगलवार को शांतिपूर्ण तरीके से पूरा हुआ था।
हिंसा और आरोप
घटना के दौरान भीड़ ने सर्वे टीम पर पत्थरबाजी की और वाहनों को आग के हवाले कर दिया। पुलिस का दावा है कि भीड़ 10-15 किलोमीटर के दायरे के स्थानीय लोगों की थी।
पुलिस के अनुसार, जिया-उर-रहमान बर्क संभल में मौजूद नहीं थे, लेकिन उनके पुराने बयानों के आधार पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। बर्क ने इस मामले को “पुलिस की साजिश” करार दिया है। उन्होंने कहा, “मैं घटना के समय बेंगलुरु में था और एक झूठा मामला मुझ पर थोपा गया है।”
विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच आरोप-प्रत्यारोप
इस घटना पर विपक्ष ने भाजपा सरकार पर निशाना साधा। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “संभल में सरकार का पक्षपाती रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार के जल्दबाजी में लिए गए फैसलों ने माहौल खराब कर दिया।”
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने दावा किया कि यह हिंसा “सरकार द्वारा फैलाई गई दंगा साजिश” है। वहीं, भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने इसे “पूर्व-नियोजित” हिंसा बताया।
संभल के हालात और आगे का रास्ता
संभल हिंसा ने प्रशासन और पुलिस की कार्रवाई पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। जहां एक ओर सरकार इसे कानून व्यवस्था की विफलता मानने से इनकार कर रही है, वहीं विपक्ष इसे भाजपा की “ध्रुवीकरण की राजनीति” का हिस्सा बता रहा है।
यह देखना होगा कि इस विवाद का कानूनी और राजनीतिक नतीजा क्या होता है और हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों पर क्या कार्रवाई की जाएगी।