Skip to content

भारत में टैलेंट शॉर्टेज: 2025 में भर्ती में सतर्कता और कंपनियों की रणनीतियाँ

  • News

जैसा कि एक हालिया रिपोर्ट में सामने आया है, भारत में लगभग 80 प्रतिशत नियोक्ता 2025 की पहली तिमाही में भर्ती में सतर्कता बरतने की योजना बना रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि अभी भी देश में हुनरमंद कर्मचारियों की भारी कमी महसूस की जा रही है, जो भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है। रिपोर्ट को देखकर एक बात तो साफ है कि चाहे हम किसी भी उद्योग की बात करें, हमारे यहां टैलेंट शॉर्टेज एक बड़ी चुनौती बन चुका है।

रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि भारत में भर्ती की सबसे बड़ी मांग होने के बावजूद, 80 प्रतिशत नियोक्ता सही टैलेंट को ढूंढने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। 2022 से यह प्रवृत्ति जारी है, और यह वैश्विक औसत (74 प्रतिशत) से भी अधिक है। अगर हम ध्यान से देखें, तो यह मुद्दा सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में टैलेंट की कमी महसूस की जा रही है।

अब, यह क्या बताता है? यह साफ संकेत है कि हमारे उद्योगों में जिन खास कौशलों की आवश्यकता है, उनकी पूरी आपूर्ति नहीं हो पा रही। खासकर आईटी, ऊर्जा, और स्वास्थ्य क्षेत्र में यह संकट ज्यादा गहरा है। IT क्षेत्र में तो भर्ती की मांग 84 प्रतिशत तक पहुंच गई है, और ऊर्जा तथा जीवन विज्ञान के क्षेत्र में भी 81 प्रतिशत तक की मांग बढ़ी है। यहां एक बात और गौर करने वाली है कि दक्षिण भारत में यह कमी और भी ज्यादा महसूस की जा रही है, जहां 85 प्रतिशत नियोक्ता इस समस्या का सामना कर रहे हैं।

अब, यह सवाल उठता है कि इससे निपटने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि कंपनियां अब अपनी मौजूदा टीम को अपस्किलिंग और रिस्किलिंग के मौके दे रही हैं, ताकि वह कौशल अंतर को भर सकें। यह कदम एक स्थायी समाधान की ओर बढ़ने का इशारा करता है, क्योंकि कंपनियां अब सिर्फ वेतन बढ़ाने जैसी तात्कालिक उपायों से आगे बढ़कर एक दीर्घकालिक रणनीति की ओर रुख कर रही हैं।

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। हमें समझना होगा कि इस स्थिति का समाधान तभी संभव है, जब शिक्षा, उद्योग और सरकार मिलकर काम करें। इसलिए, नियोक्ता अब नए टैलेंट पूल्स की ओर रुख कर रहे हैं, जबकि 22 प्रतिशत नियोक्ता अस्थायी भर्ती को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं, और 38 प्रतिशत नियोक्ता नए टैलेंट पूल्स में भर्ती बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

अगर हम इस पर गहरी नजर डालें तो यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि नियोक्ता अब अपनी भर्ती प्रक्रिया को और अधिक रणनीतिक बना रहे हैं। वे कर्मचारी की आंतरिक गतिशीलता को बढ़ाने, यानी कि अपनी मौजूदा टीम में ही नए अवसर देने पर जोर दे रहे हैं। इससे न सिर्फ भर्ती लागत में कमी आएगी, बल्कि कर्मचारियों को भी नए कौशल सीखने का मौका मिलेगा, जो उनके करियर में और कंपनी के लिए फायदेमंद हो सकता है।

इस संदर्भ में हमें यह भी देखना होगा कि रोजगार की इस कमी से आने वाले समय में हमारी आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। अगर इसी तरह की चुनौतियां बनी रहीं, तो यह पूरे उद्योग जगत के लिए एक गंभीर समस्या बन सकती है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम भविष्य में एक ऐसे कार्यबल को तैयार करें, जो न सिर्फ आज की मांग को पूरा कर सके, बल्कि आने वाले समय में हमारे उद्योगों की जरूरतों के हिसाब से भी फिट हो।

इसलिए, अब यह हमारे ऊपर है कि हम इस टैलेंट शॉर्टेज के मुद्दे का समाधान कैसे ढूंढते हैं। क्या हम नए विचारों, नई नीतियों और सहयोग से इस समस्या का हल निकालेंगे? या फिर इस पर भी हम समय का इंतजार करेंगे, जबकि स्थिति और जटिल होती जाए?

यह सच है कि यह एक बड़ी चुनौती है, लेकिन अगर हम इसे मिलकर सुलझाते हैं, तो न केवल हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी, बल्कि हम भविष्य के लिए भी एक तैयार और कुशल कार्यबल बना सकेंगे।