UGC के नए दिशा-निर्देश: सहायक प्रोफेसर के लिए NET अनिवार्य नहीं, बहु-विषयक शिक्षा को मिलेगा बढ़ावा

आपको बता दूं, एक बड़ा बदलाव होने वाला है उच्च शिक्षा में शिक्षकों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए। अब से, नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (NET) को सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के लिए अनिवार्य नहीं रखा जाएगा। यह फैसला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा जारी किए गए ड्राफ्ट दिशा-निर्देशों में किया गया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को इसे जारी किया।

आपको याद दिला दूं कि अब तक NET या SET को उत्तीर्ण किए बिना सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति नहीं मिल सकती थी। लेकिन अब, यह अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। इन नए नियमों का उद्देश्य शिक्षा क्षेत्र में लचीलापन, नवाचार और समावेशिता को बढ़ावा देना है, जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में कहा गया है।

UGC के अध्यक्ष M जगदीश कुमार ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ये नए दिशा-निर्देश शिक्षकों को बहुआयामी और बहु-विषयक पृष्ठभूमि से आने का अवसर देंगे। NEP 2020 के अंतर्गत, अब शिक्षक चाहे किसी भी विषय में स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) डिग्री करें, यदि उन्होंने किसी अन्य क्षेत्र में PhD की है, तो उन्हें उस क्षेत्र में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के लिए योग्य माना जाएगा।

इन बदलावों से संस्थानों को अपने शैक्षिक स्टाफ को विविध और बहुविषयक पृष्ठभूमियों से चुनने का मौका मिलेगा। नए ड्राफ्ट नियमों के मुताबिक, उम्मीदवारों के लिए यह जरूरी होगा कि उनके पास चार साल की UG डिग्री हो और कम से कम 75% अंक हों या फिर PG डिग्री हो जिसमें कम से कम 55% अंक हो और साथ ही PhD डिग्री भी हो।

इतना ही नहीं, NET या SET में किसी अन्य विषय में उत्तीर्ण उम्मीदवार, उस विषय में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के योग्य होंगे, जिसमें उन्होंने NET या SET को उत्तीर्ण किया है। यह कदम शैक्षिक संस्थानों में बहुआयामी पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने की दिशा में अहम कदम साबित हो सकता है।

इसके अलावा, 2025 के लिए जारी किए गए इन नए नियमों में, Academic Performance Indicator (API) प्रणाली को भी समाप्त कर दिया गया है। अब, उम्मीदवारों का मूल्यांकन सिर्फ पत्रिकाओं में प्रकाशन या कांफ्रेंस में पेपर प्रस्तुत करने से नहीं होगा। इसके बजाय, उन्हें पुस्तकों की रचनाएँ, तकनीकी विकास, पेटेंट के लिए आवेदन, भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) पर शोध जैसे विभिन्न क्षेत्रों में योगदान करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा। ये योगदान चयन समितियों द्वारा उनके प्रोमोशन के दौरान मूल्यांकित किए जाएंगे।

इसी तरह, सहायक प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर बनने के लिए कम से कम आठ साल और प्रोफेसर बनने के लिए दस साल का शिक्षण अनुभव आवश्यक होगा। इसके साथ ही, UGC ने योग, संगीत, कला, और खेल जैसे क्षेत्रों में विशेष भर्ती मार्गों को भी पेश किया है, ताकि इन क्षेत्रों में उच्च योग्यताओं और राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त व्यक्तियों को आकर्षित किया जा सके।

इसके अलावा, उपकुलपति (Vice-Chancellor) की नियुक्ति प्रक्रिया में भी बदलाव किए गए हैं। अब, सिर्फ शैक्षिक संस्थानों में दस साल का अनुभव रखने वाले व्यक्ति ही उपकुलपति के पद के लिए पात्र नहीं होंगे, बल्कि उन्हें अन्य क्षेत्रों जैसे अनुसंधान संस्थान, सार्वजनिक नीति, प्रशासन और उद्योग से भी उम्मीदवारों को इस पद पर नियुक्त किया जा सकेगा।

दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रोफेसर धनंजय जोशी ने इन नए नियमों को एक सकारात्मक कदम बताया और कहा कि “शिक्षक को बहुआयामी शिक्षा के अनुरूप होना चाहिए जैसा कि NEP 2020 में सुझाया गया है। ये दिशा-निर्देश इसी दिशा में एक बड़ा कदम है।”

यानी अब उच्च शिक्षा में बदलाव की शुरुआत हो रही है। यह सिर्फ एक नियम का परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह शिक्षा के तरीके, इसके प्रभाव और इसके भविष्य के लिए एक नई दिशा का संकेत है।

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