वैश्विक अस्थिरता के बीच संगठनों के लिए लचीलापन और सहयोग की अहमियत

विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वार्षिक बैठक के बारे में एक लेख पढ़ा, जिसमें बताया गया कि मौजूदा वैश्विक अस्थिरता और जटिल आर्थिक व भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच संगठनों को कैसे अनुकूलन करना चाहिए। यह बैठक स्विट्जरलैंड के डावोस में “Collaboration for the Intelligent Age” थीम के साथ आयोजित हुई। इस खबर को पढ़कर यह साफ लगता है कि मौजूदा समय में संगठनों के लिए लचीलापन (resilience) एक बेहद अहम कारक बन गया है।

इस लेख में विश्व आर्थिक मंच और मैकिन्से एंड कंपनी के साझा रिपोर्ट “The Resilience Pulse Check: Harnessing Collaboration” का जिक्र किया गया, जिसमें यह बताया गया कि संगठनों को लंबे समय तक स्थिरता बनाए रखने के लिए न केवल तत्काल खतरों का सामना करना चाहिए, बल्कि भविष्य की तैयारी में भी सक्रियता दिखानी होगी। रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया कि संगठनों के द्वारा वर्तमान में मुख्य रूप से छोटे अवधि के रक्षात्मक कदम उठाए जा रहे हैं, जबकि दीर्घकालिक स्थायित्व के लिए आक्रामक और सक्रिय रणनीतियों की भी आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा के अनुसार, हमें ऐसी दुनिया में काम करना सीखना होगा जहां अप्रत्याशित परिस्थितियों की उम्मीद की जा सकती है। यह टिप्पणी मौजूदा वैश्विक अनिश्चितताओं जैसे अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक तनावों पर भी लागू होती है, जिसने संगठनों को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने और जोखिम को कम करने के लिए मजबूर कर दिया है।

लेख में यह भी बताया गया कि सार्वजनिक क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस अंतर को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। सतत निवेश, कार्यबल की तैयारी और आर्थिक स्थिरता जैसे मुद्दों पर सामूहिक पहल की आवश्यकता है।

कुल मिलाकर, यह लेख हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हमारे जैसे संगठनों को न केवल तात्कालिक खतरों के प्रति सतर्क रहना चाहिए, बल्कि भविष्य के लिए भी बेहतर तैयारी करनी चाहिए। विश्व आज अस्थिरता और अप्रत्याशित चुनौतियों से भरा हुआ है, और इसका सामना केवल सहयोगात्मक दृष्टिकोण और दीर्घकालिक सोच के साथ ही किया जा सकता है।

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