जब डॉक्टर नहीं मिलते, तो क्या AI से इलाज पाना समझदारी है?

कभी मेडिकल ओपिनियन के लिए रिश्तेदारों से सलाह ली जाती थी, फिर गूगल आया — और अब AI चैटबॉट्स ने जगह बना ली है। ChatGPT जैसे टूल अब सिर्फ टेक्स्ट जनरेट करने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि लोग इनसे हेल्थ संबंधी सलाह लेने लगे हैं। एक हालिया सर्वे के मुताबिक, अमेरिका में हर छह में से एक वयस्क हर महीने कम से कम एक बार किसी AI चैटबॉट से स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह लेता है। लेकिन एक नई रिपोर्ट से यह चिंता सामने आई है कि कहीं यह सुविधा हमें भ्रम में तो नहीं डाल रही?

ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट की अगुवाई में की गई एक स्टडी बताती है कि AI चैटबॉट्स पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना जोखिम भरा हो सकता है — खासकर तब जब लोग खुद नहीं जानते कि इन्हें पूछते वक्त कौन सी जानकारी ज़रूरी है। इस स्टडी में लगभग 1300 लोगों को डॉक्टर्स द्वारा बनाए गए मेडिकल सीनारियो दिए गए और उनसे कहा गया कि वे संभावित बीमारी की पहचान करें और अगला कदम तय करें — चाहे वो अस्पताल जाना हो या डॉक्टर से मिलना।

इन प्रतिभागियों को GPT-4o (जो ChatGPT को पावर करता है), Cohere’s Command R+ और Meta का Llama 3 जैसे मॉडल्स इस्तेमाल करने को दिए गए। लेकिन नतीजे चौंकाने वाले थे — जो लोग AI चैटबॉट्स का इस्तेमाल कर रहे थे, वे सही बीमारी पहचानने में पीछे रहे और कई बार बीमारी की गंभीरता को भी कम आँका। यही नहीं, यूज़र्स अक्सर ज़रूरी जानकारियाँ पूछते समय छोड़ देते थे या उन्हें जो जवाब मिलते थे, वे अधूरे और भ्रमित करने वाले होते थे।

AI का सबसे बड़ा वादा यह रहा है कि वह इंसानी काम को और तेज़, सटीक और व्यापक बना सकता है। Apple, Amazon और Microsoft जैसे बड़े नाम भी इस दिशा में रिसर्च और प्रोडक्ट डेवलपमेंट में लगे हुए हैं — चाहे वह डाइट और स्लीप से जुड़ी सलाह हो या मरीजों के मैसेज का त्वरित विश्लेषण। लेकिन सवाल वही है — क्या AI इस स्तर की संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी संभालने के लिए तैयार है?

AI की दुनिया में कुछ भी “फुलप्रूफ” नहीं होता। और जब बात इंसानी स्वास्थ्य की हो — तब तो हर चूक जानलेवा हो सकती है। TechCrunch पर छपी इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि कई बार चैटबॉट्स अच्छे और बुरे सुझावों का मिश्रण दे देते हैं, जिससे निर्णय और मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि अमेरिकी मेडिकल असोसिएशन ने डॉक्टरों को ऐसे चैटबॉट्स की मदद से क्लिनिकल डिसीज़न लेने से मना किया है।

मुझे लगता है कि हमें तकनीक को नकारने की नहीं, बल्कि समझदारी से इस्तेमाल करने की ज़रूरत है। AI टूल्स हमारी जानकारी बढ़ा सकते हैं, हमें सजग कर सकते हैं — लेकिन अंतिम फैसला अब भी डॉक्टर का ही होना चाहिए। जैसे दवाओं के लिए क्लिनिकल ट्रायल जरूरी होता है, वैसे ही चैटबॉट्स को भी इंसानी इस्तेमाल के लिहाज से टेस्ट किया जाना चाहिए।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ChatGPT हो या कोई और AI टूल — ये ‘एडवाइजरी सिस्टम’ हैं, ‘डायग्नोसिस टूल’ नहीं। और जब मामला हमारी सेहत का हो, तो किसी डिजिटल सहायक से ज़्यादा ज़रूरी एक अनुभवी डॉक्टर का निर्णय होता है। तकनीक हमारी सहायक हो सकती है, विकल्प नहीं।

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