भारत और यूरोपीय संघ जुलाई तक आंशिक मुक्त व्यापार समझौता अंतिम रूप देने को तैयार

भारत और यूरोपीय संघ (EU) जुलाई तक आंशिक मुक्त व्यापार समझौते (Interim Free Trade Agreement – FTA) को अंतिम रूप देने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। दोनों पक्षों की कोशिश है कि इस “अर्ली हार्वेस्ट” समझौते को जल्द से जल्द पूरा किया जाए, जिससे व्यापार में सुधार हो और निर्यात को बढ़ावा मिले।

समझौते का उद्देश्य और महत्व

यह आंशिक समझौता केवल टैरिफ (शुल्क) में छूट तक सीमित नहीं होगा, बल्कि इसमें बौद्धिक संपदा अधिकार (IPRs), सरकारी खरीद, गैर-टैरिफ बाधाएं, तकनीकी मानक, और स्वास्थ्य-संरक्षण उपाय जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे भी शामिल होंगे। इससे भारत को यूरोपीय बाजार में अपनी वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स, स्टील और तेल उत्पादों की बेहतर पहुंच मिलेगी, जबकि भारत ऑटोमोबाइल, शराब, मांस और पोल्ट्री उत्पादों पर शुल्क में कमी देने को तैयार है।

वार्ता की पृष्ठभूमि

भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत करीब दो दशकों से चल रही है, लेकिन हाल के महीनों में इसमें तेजी आई है। भारत के मुख्य वार्ताकार सत्य श्रीनिवास ब्रुसेल्स में वार्ता को गति देने के लिए मौजूद हैं। दोनों पक्षों ने वैश्विक व्यापार के अनिश्चित माहौल को देखते हुए समझौते को दो चरणों में पूरा करने पर सहमति व्यक्त की है। यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ नीतियों के कारण उत्पन्न हुई वैश्विक अस्थिरता से निपटने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

चुनौतियां और विवादास्पद मुद्दे

हालांकि, इस समझौते में कुछ जटिल मुद्दे भी हैं। यूरोपीय संघ भारत से श्रम अधिकारों, पर्यावरणीय स्थिरता, और डेटा सुरक्षा के कड़े प्रतिबंधों को मानने की मांग कर रहा है, जबकि भारत इन मुद्दों पर अधिक लचीले और घरेलू कानूनों के अनुकूल दृष्टिकोण चाहता है। बौद्धिक संपदा अधिकारों के क्षेत्र में भी EU ‘TRIPS-plus’ प्रावधानों की मांग करता है, जो भारत की दवा उद्योग के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। इसके अलावा, यूरोपीय संघ चाहता है कि भारत कुछ यूरोपीय उत्पादों को अपने भौगोलिक संकेत (Geographical Indications – GIs) के लिए स्वतः मान्यता दे, जबकि भारत अपने कानूनी प्रक्रियाओं के पालन पर जोर देता है।

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