भारत की आर्थिक तस्वीर: एक नई दिशा की ओर?

जब मैंने यह रिपोर्ट पढ़ी कि FY25 में भारत की प्रति व्यक्ति नाममात्र GDP करीब ₹35,000 तक बढ़ने की संभावना है, तो मेरे मन में आशा और सवाल दोनों उठे। भले ही वास्तविक GDP वृद्धि धीमी हो गई है और नाममात्र GDP लगभग स्थिर है, यह बढ़ोतरी एक सकारात्मक संकेत की तरह लगती है।

परिवार और खर्च: बदलते व्यवहार की झलक
रिपोर्ट में निजी खपत को आर्थिक वृद्धि का मुख्य चालक बताया गया है। FY25 में निजी खपत 7.3% की वृद्धि के साथ रिकॉर्ड ऊंचाई पर है, जो उपभोक्ता खर्च में एक मजबूत वापसी को दर्शाता है। दिलचस्प बात यह है कि प्रति व्यक्ति निजी खपत (6.3%) ने प्रति व्यक्ति GDP वृद्धि (5.3%) को पीछे छोड़ दिया है।

यह आँकड़ा मुझे सोचने पर मजबूर करता है। क्या यह सही है कि हम अपनी बचत का सहारा लेकर खर्च को बनाए हुए हैं? रिपोर्ट ने इसे स्पष्ट किया है कि FY25 में निजी खपत मुख्यतः बचत के उपयोग से संभव हुई है। यह हमारी उपभोग-प्रधान अर्थव्यवस्था की दृढ़ता को दिखाता है, लेकिन साथ ही बचत की घटती दरों पर भी सवाल उठाता है।

क्या यह दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ है?
जब मैंने पढ़ा कि बचत का इस्तेमाल खपत के लिए हो रहा है, तो मन में चिंता पैदा हुई। अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो क्या हमारा आर्थिक भविष्य सुरक्षित रहेगा? वित्तीय अनुशासन के बिना, खपत-driven विकास दीर्घकालिक नहीं हो सकता।

आर्थिक आंकड़ों का महत्व
SBI की यह रिपोर्ट हमें बताती है कि व्यापक GDP के आंकड़ों से आगे बढ़कर हमें प्रति व्यक्ति आय और खपत जैसे व्यक्तिगत आर्थिक संकेतकों को भी समझना होगा। आखिरकार, ये आँकड़े ही आम आदमी की जिंदगी पर सीधा प्रभाव डालते हैं।

Today's Latest

Top This Week