
विश्व मौसम संगठन (WMO) की ताज़ा रिपोर्ट ने एक बार फिर चेतावनी दी है—जलवायु संकट अब भविष्य की कल्पना नहीं, बल्कि वर्तमान की सच्चाई बन चुका है। अगले पांच वर्षों (2025-2029) के लिए जारी “ग्लोबल एनुअल टू डेकैडल क्लाइमेट अपडेट” के मुताबिक, धरती की गर्मी नए रिकॉर्ड तोड़ेगी और इसके असर हर कोने में महसूस किए जाएंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 से 2029 के बीच हर साल का औसत तापमान 1850-1900 की तुलना में 1.2°C से 1.9°C तक अधिक हो सकता है। यानी हम लगातार उन स्तरों के पास पहुँचते जा रहे हैं जिन्हें पेरिस समझौते में सीमित रखने की बात की गई थी। चिंता की बात यह है कि इस अवधि में किसी एक वर्ष के 2024 से भी अधिक गर्म होने की संभावना 80% तक है।
सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि आर्कटिक क्षेत्र में सर्दियों के मौसम (नवंबर से मार्च) में तापमान वैश्विक औसत से तीन गुना से भी अधिक बढ़ेगा—लगभग 2.4°C की उछाल। इसका सीधा असर समुद्री बर्फ पर पड़ेगा। रिपोर्ट बताती है कि 2025-2029 के बीच बर्फ की परतें बर्फीले समुद्री क्षेत्रों—बारेंट्स सी, बेरिंग सी और सी ऑफ ओखोट्स्क—में और पतली होती जाएंगी।
बारिश के पैटर्न में भी बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। मई से सितंबर तक, सहेल क्षेत्र, उत्तरी यूरोप, अलास्का और उत्तरी साइबेरिया में औसत से अधिक वर्षा की संभावना है, जबकि अमेज़न क्षेत्र में सूखा बढ़ेगा। दक्षिण एशिया, जिसमें भारत भी शामिल है, में हाल के वर्षों की तरह औसत से अधिक बारिश जारी रहने की उम्मीद है, हालांकि हर साल ऐसा जरूरी नहीं होगा।
WMO की उप महासचिव को बैरेट ने दो टूक कहा—“पिछले दस सालों में हर साल रिकॉर्ड गर्मी देखी गई है, और दुर्भाग्य से यह रिपोर्ट कोई राहत नहीं दिखाती। इसका सीधा असर हमारी अर्थव्यवस्था, जीवनशैली, जैवविविधता और ग्रह पर होगा।”
इस रिपोर्ट का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि पेरिस समझौते के तहत विश्व समुदाय ने वैश्विक औसत तापमान को 2°C से नीचे और बेहतर तौर पर 1.5°C के भीतर सीमित रखने का संकल्प लिया था। लेकिन अब, 2025-2029 के बीच 1.5°C की सीमा को अस्थायी रूप से पार करने की संभावना 70% है—जो पिछले वर्ष की तुलना में काफी बढ़ी है। यह संख्या 2024-2028 के लिए 47% और 2023-2027 के लिए 32% थी।
हालांकि विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि 1.5°C की अस्थायी उल्लंघन को समझौते की असफलता नहीं माना जाएगा क्योंकि इसका आंकलन 20 वर्षों की औसत गर्मी के आधार पर किया जाता है। मगर समस्या यह है कि 2015-2034 के लिए 20 वर्षीय औसत तापमान पहले ही 1.44°C तक पहुँच गया है, जो चेतावनी की सीमा से बेहद नजदीक है।
इस रिपोर्ट के जरिये एक बार फिर यह साबित हुआ है कि जलवायु परिवर्तन अब रुकने वाला नहीं है। ज़रूरत है तत्काल और ठोस कदमों की—चाहे वो राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को अद्यतन करना हो या स्थानीय स्तर पर अनुकूलन रणनीतियाँ तैयार करना।