
दो छोटी बहनों की ज़िंदगी महज 18 दिनों में पूरी तरह बदल गई। पहले मां को खोया और फिर हादसे में पिता को भी। ये दिल दहला देने वाली सच्चाई है लंदन में रहने वाली 8 और 4 साल की दो बहनों की, जिनके सिर से एक ही महीने में माता-पिता दोनों का साया उठ गया।
पिता अर्जुनभाई पटोलिया (उम्र 37), जो कि एक फर्नीचर डिज़ाइनर थे, अपनी पत्नी भारती की अंतिम इच्छा पूरी करने भारत आए थे। भारती (उम्र 43) कैंसर से जूझते हुए 26 मई को लंदन में चल बसी थीं। मरने से पहले उन्होंने इच्छा जताई थी कि उनकी अस्थियां उनके गांव की नदी में विसर्जित की जाएं। इस अंतिम संस्कार के लिए अर्जुन अपनी बेटियों को लंदन में अपनी साली के पास छोड़कर गुजरात पहुंचे थे।
अर्जुन ने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर नर्मदा नदी में भारती की अस्थियां विसर्जित की थीं। परिवार वालों ने बताया कि अर्जुन पूरे समय शांति और दृढ़ता के साथ पत्नी की अंतिम क्रियाएं निभा रहे थे, जैसे अपने दुख को भीतर समेटे कोई साधु हो। लेकिन नियति ने इससे भी बड़ा आघात उनके लिए तैयार कर रखा था।
13 जून को जब अर्जुन लंदन लौट रहे थे, तो एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 अहमदाबाद से उड़ान भरते ही क्रैश हो गई। इस भयावह हादसे में अर्जुन की जान चली गई। उनके साथ विमान में मौजूद 242 में से 241 लोग मारे गए, जिनमें 52 ब्रिटिश नागरिक भी शामिल थे।
अर्जुन का बचपन भी संघर्षों भरा रहा। उन्होंने बहुत छोटी उम्र में पिता को खो दिया था। मां ने घर-घर बर्तन बेचकर उन्हें पढ़ाया। उन्होंने सूरत के स्वामीनारायण गुरुकुल में पढ़ाई की और फिर 20 साल की उम्र में लंदन चले गए। वहां उन्होंने MBA किया, फिर एक फर्नीचर कंपनी में काम किया और धीरे-धीरे खुद का व्यवसाय खड़ा किया। उन्होंने ‘खट्टामीठा लंदन’ नाम से एक फूड स्टार्टअप भी शुरू किया था।
लंदन में ही उनकी मुलाकात भारती से हुई, जो पेशे से एकाउंटेंट थीं। दोनों ने शादी की, और अपनी दो बेटियों के साथ एक खुशहाल जीवन बसा लिया। पड़ोसी उन्हें “परफेक्ट कपल” कहा करते थे, और बड़ी बेटी को “डैडी की बेटी”।
अब जब दोनों बेटियों के माता-पिता नहीं रहे, तो उनका लालन-पालन अर्जुन के छोटे भाई गोपाल कर रहे हैं, जो लंदन में ही रहते हैं। अर्जुन की मां, जो अब सूरत में हैं, ने उनके पार्थिव शरीर की पहचान के लिए DNA सैंपल दिया ताकि बेटे की अंतिम क्रिया उनके गांव वाडिया में की जा सके।
यह कहानी केवल एक हादसे की नहीं, बल्कि उन अधूरी इच्छाओं, अधूरे परिवारों और मासूम उम्र में टूटे सपनों की भी है, जो हर ऐसे विमान हादसे के साथ पीछे छूट जाते हैं।