
भारत सरकार ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच एक संभावित “परमाणु युद्ध” को टाल दिया था। विदेश मंत्रालय ने साफ किया है कि भारत द्वारा की गई सैन्य कार्रवाई पूरी तरह पारंपरिक (conventional) थी और इसमें परमाणु हथियारों की कोई भूमिका नहीं थी।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जैसवाल ने प्रेस वार्ता में बताया, “यह सैन्य कार्रवाई केवल पारंपरिक थी। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि पाकिस्तान की नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक 10 मई को होनी थी, लेकिन बाद में खुद पाकिस्तान ने इसे खारिज कर दिया। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने भी परमाणु एंगल से इनकार किया है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अपने पहले संबोधन में यह साफ कर दिया कि भारत किसी भी तरह के “परमाणु ब्लैकमेल” को सहन नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई केवल फिलहाल टाली गई है, आगे का कदम उनके व्यवहार पर निर्भर करेगा। उन्होंने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर अब भारत की आतंकवाद के खिलाफ नई नीति है। अब एक नई रेखा खींच दी गई है।”
ट्रंप ने हाल ही में यह दावा किया कि उन्होंने व्यापार को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करके भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को रोका। उन्होंने कहा, “मैंने दोनों देशों से कहा कि अगर तुम नहीं रुकोगे तो हम व्यापार नहीं करेंगे। अगर रुक जाओगे, तो हम बहुत सारा व्यापार करेंगे। और उन्होंने रुकने का फैसला किया।”
हालांकि, भारत सरकार के सूत्रों ने इस बयान को नकारते हुए कहा कि अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वांस और प्रधानमंत्री मोदी के बीच हुई बातचीत में व्यापार का कोई जिक्र नहीं हुआ था। सूत्रों के मुताबिक, “9 मई को उपराष्ट्रपति वांस ने प्रधानमंत्री से बात की थी। इसके अलावा 8 और 10 मई को अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से बात की, पर कहीं भी व्यापार को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई।”
कांग्रेस ने भी इस मसले पर सरकार से जवाब मांगा है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पूछा, “क्या भारत ने अमेरिकी मध्यस्थता स्वीकार की है? क्या परमाणु संकट के नाम पर भारत को व्यापार के दबाव में आना पड़ा?” उन्होंने कहा कि इस मसले पर प्रधानमंत्री की चुप्पी हैरान करने वाली है।
इस बीच, भारत और पाकिस्तान के बीच 11 मई को तत्काल युद्धविराम (ceasefire) पर सहमति बनी, जो दोनों देशों के अधिकारियों के सीधे संपर्क का नतीजा था। पाकिस्तान ने इस सहमति को बिना किसी शर्त और अन्य मुद्दों से जोड़े स्वीकार किया।
जहां एक तरफ भारत साफ तौर पर कह चुका है कि वह आतंकवाद और परमाणु ब्लैकमेल के खिलाफ खड़ा रहेगा, वहीं ट्रंप के बयान और उसके बाद उठे राजनीतिक तूफान ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं — कूटनीति के इस दौर में क्या सटीक संवाद और पारदर्शिता की जरूरत पहले से कहीं ज़्यादा नहीं है?