
भारत के प्रख्यात खगोलभौतिक विज्ञानी, विज्ञान संप्रेषक और इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिज़िक्स (IUCAA) के संस्थापक निदेशक प्रोफेसर जयंतीलोक विष्णु नार्लीकर का मंगलवार को पुणे में निधन हो गया। वे 87 वर्ष के थे।
नार्लीकर का जीवन एक ऐसे वैज्ञानिक की मिसाल है जिसने न केवल ब्रह्मांड की गुत्थियों को सुलझाने में अभूतपूर्व योगदान दिया, बल्कि विज्ञान को आम लोगों की ज़िंदगी से भी जोड़ा। उनके निधन से भारतीय विज्ञान जगत में एक गहरी रिक्तता पैदा हो गई है—ऐसी शून्यता जिसे भरना शायद असंभव होगा।
सवाल पूछने की ज़िद ही उनकी विरासत थी
जंयतीलोक नार्लीकर का पूरा वैज्ञानिक जीवन विचारों की रूढ़ियों को तोड़ने की मिसाल रहा। जब अधिकांश वैज्ञानिक बिग बैंग थ्योरी को ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धांत मान चुके थे, तब भी नार्लीकर ने ‘Steady State Theory’ की रक्षा की, जिसे उन्होंने अपने मेंटर फ्रेड हॉयल के साथ मिलकर आगे बढ़ाया था। बाद में उन्होंने Quasi-Steady State Cosmology मॉडल प्रस्तुत किया, जिसमें ब्रह्मांड को अनंत और चक्रीय माना गया—ना कोई शुरुआत, ना कोई अंत।
उन्होंने कभी वैज्ञानिक सहमति के आगे समर्पण नहीं किया, बल्कि लगातार सवाल खड़े किए। चाहे वह मैक के सिद्धांत (Mach’s Principle) हों या सापेक्षता के सिद्धांत (Relativity) की आलोचना—नार्लीकर उन गिने-चुने वैज्ञानिकों में से थे जो हर “मंजूरशुदा” सिद्धांत को दोबारा जांचने का साहस रखते थे।
विज्ञान को समाज से जोड़ा
उनका सबसे बड़ा योगदान शायद यही था कि उन्होंने विज्ञान को समाज से अलग नहीं समझा। जब 1988 में उन्होंने IUCAA की स्थापना की, तो यह सिर्फ शोध केंद्र नहीं, बल्कि एक ऐसा संस्थान था जो समाज के साथ संवाद कर सके। 90 के दशक में जब वैज्ञानिक संस्थान आमजन से दूर थे, तब नार्लीकर ने स्कूल आउटरीच प्रोग्राम शुरू किया, जिससे 500 से ज्यादा स्कूलों तक खगोलविज्ञान की सरल समझ पहुंची।
वे बच्चों के सवालों का जवाब मराठी, हिंदी और अंग्रेजी में बड़ी सहजता से देते थे, और विज्ञान को रहस्यमय नहीं, बल्कि जिज्ञासा से भरपूर बनाते थे।
अंधविश्वास के खिलाफ प्रखर आवाज़
नार्लीकर का एक और अनमोल पक्ष था—छद्म विज्ञान और अंधविश्वास के खिलाफ उनका संघर्ष। उन्होंने नरेंद्र दाभोलकर जैसे तर्कशील आंदोलनकारियों के साथ मिलकर समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। वे खुले तौर पर ज्योतिष और चमत्कारों की आलोचना करते थे, और हमेशा तथ्यों पर आधारित समझ को प्राथमिकता देते थे।
विज्ञान और कला का संगम
नार्लीकर केवल वैज्ञानिक नहीं, बल्कि एक संवेदनशील कथाकार और कलाप्रेमी भी थे। उन्होंने मराठी में कई विज्ञान गल्प (science fiction) लिखे, जिनमें उन्होंने महिला-प्रधान ग्रहों और ब्रह्मांडीय विरोधाभासों की कहानियां बुनीं। प्रसिद्ध फिल्मकार साई परांजपे ने उनकी एक कहानी को लोकनाट्य में ढाल दिया, जो ग्रामीण महाराष्ट्र की परंपरा और आधुनिक विज्ञान का सुंदर संगम था।
उनका यह विश्वास था कि विज्ञान और कला एक ही जिज्ञासा के दो रूप हैं।
प्रेरणा का आकाश
नार्लीकर की सबसे प्रसिद्ध मराठी पुस्तक “आकाशाशी जडले नाते” (आसमान से जुड़ा रिश्ता) आज भी एक पूरी पीढ़ी को वैज्ञानिक सोच से जोड़ती है। उन्होंने NCERT की विज्ञान-गणित समिति का नेतृत्व किया और पाठ्यपुस्तकों को जनसामान्य के लिए सरल और सुलभ बनाया।
IUCAA की संरचना भी उनकी सोच को दर्शाती है—जहां न्यूटन और आइंस्टीन की मूर्तियां, ब्लैक होल की आकृति, और फूको का पेंडुलम विज्ञान को जीवंत बनाते हैं। उन्होंने केम्ब्रिज के न्यूटन के बाग से सेब के पेड़ की एक शाखा लाकर पुणे में लगवाई—जिसने फल भी दिए। यह नार्लीकर की सोच थी—खेलती, प्रतीकात्मक और वास्तविक।
एक प्रकाश जो राह दिखा गया
उनका निधन सिर्फ एक वैज्ञानिक की मृत्यु नहीं है, बल्कि एक ऐसे प्रकाश का बुझ जाना है जो हजारों लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तर्कशीलता और जिज्ञासा की ओर ले गया।
उन्होंने कहा था—“मैं फीता नहीं काटता। मुझे तब बुलाइए जब मैं छात्रों से बात कर सकूं।” और उन्होंने उम्र के अंतिम वर्षों तक यही किया—हर मंच पर, हर छात्र के सवाल का जवाब देते हुए।