
भारत और पाकिस्तान हाल ही में युद्ध के मुहाने से लौट आए हैं, जिसमें अमेरिका की अहम भूमिका मानी जा रही है। लेकिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश के बाद भारत के अंदर कूटनीतिक और राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।
ट्रंप ने हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम का स्वागत करते हुए कहा कि वह दोनों देशों के साथ व्यापार बढ़ाएंगे और कश्मीर समाधान में मदद करने को तैयार हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई है और सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा है।
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने ट्रंप के ‘हजार साल पुराने संघर्ष’ वाले बयान को खारिज करते हुए कहा, “कश्मीर संघर्ष 22 अक्टूबर, 1947 से शुरू हुआ जब पाकिस्तान ने स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर राज्य पर हमला किया। उसके बाद महाराजा हरि सिंह ने पूरे जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय किया। यह कोई बाइबिल काल का संघर्ष नहीं है।”
राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के ‘न्यूट्रल फोरम’ वाले बयान पर सवाल उठाते हुए पूछा, “क्या हमने शिमला समझौता छोड़ दिया है? क्या हमने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए रास्ता खोल दिया है?”
भारत की रणनीति पर सवाल
विशेषज्ञों और विपक्षी दलों ने यह भी सवाल उठाए हैं कि क्या पाकिस्तान पर मिसाइल हमले से भारत को कूटनीतिक लाभ मिला? ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने पाकिस्तान पर गहरे हमले किए, लेकिन अचानक हुए युद्धविराम से मोदी सरकार को विपक्ष और आम जनता दोनों के बीच आलोचना झेलनी पड़ी।
भारत सरकार ने सार्वजनिक रूप से ट्रंप या किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को स्वीकार नहीं किया है। सरकारी सूत्रों ने ANI से कहा कि यह युद्धविराम दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों (DGMOs) के बीच संवाद के जरिए हुआ।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और अमेरिकी दखल
पाकिस्तान ने अमेरिका की मध्यस्थता की सराहना की है और कहा कि बिना अमेरिकी गारंटी के वह युद्धविराम के लिए तैयार नहीं होता। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने कहा कि कश्मीर पर बार-बार टकराव की स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक मूल मुद्दों का हल नहीं निकलता।
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “भारत और पाकिस्तान के नेताओं ने समझदारी और साहस का परिचय दिया। यह युद्ध दुनिया को भारी नुकसान पहुंचा सकता था। हम इस ऐतिहासिक फैसले को दिल से सराहते हैं।”
भारत का रुख: कश्मीर आंतरिक मामला
भारत सरकार हमेशा से कश्मीर को देश का आंतरिक मामला मानती रही है और किसी भी तीसरे पक्ष की भूमिका को खारिज करती है। सरकार के करीबी विशेषज्ञों ने भी चेताया है कि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता से भारत की कूटनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है और इससे पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर ध्यान हट सकता है।
हालांकि, भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत ने उसे वैश्विक मंच पर मजबूत स्थिति दिलाई है, लेकिन कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर विदेश नीति के संतुलन की कड़ी परीक्षा सामने है।