
पुलवामा की पीड़ा अब इतिहास बन चुकी है, लेकिन पहलगाम के आतंकवादी हमले ने एक बार फिर देश को झकझोर कर रख दिया। इस बार भारत ने जवाब दिया — न सिर्फ शब्दों में, बल्कि सटीक और सोच-समझकर की गई कार्रवाई में। भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तानी और पीओके के आतंकी ठिकानों पर चलाया गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ न सिर्फ सामरिक दृष्टि से अहम साबित हुआ, बल्कि इसने देश की राजनीतिक एकता का भी प्रतीक बन गया।
इस बार खास बात यह रही कि सत्ता पक्ष ही नहीं, बल्कि विपक्ष के तमाम बड़े नेता एक सुर में खड़े नज़र आए। हर पार्टी ने न सिर्फ भारतीय सेना के साहस और रणनीति की सराहना की, बल्कि सरकार द्वारा लिए गए निर्णायक कदम को भी पूरी तरह समर्थन दिया।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने कहा, “हमारी सेना के साथ, हमारे देश के लिए।” वहीं ममता बनर्जी ने दो टूक कहा, “हम आतंकवाद के खिलाफ एक हैं। इस मुद्दे पर कोई राजनीतिक मतभेद नहीं होना चाहिए।”
कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी सेना के साहसिक कदम को देश की एकता की मिसाल बताया। राहुल गांधी ने ‘जय हिंद’ के नारे के साथ सेना को सलामी दी, जबकि खड़गे ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस हमेशा से ऐसे निर्णायक कदमों के साथ रही है और रहेगी।
एनसीपी नेता शरद पवार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को “सोच-समझकर चुने गए टारगेट्स पर की गई प्रभावशाली प्रतिक्रिया” बताया। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस तरह की सटीक कार्रवाई, जिसमें पाकिस्तान के आम नागरिक या सेना को नुकसान न हो, भारत की नैतिक बढ़त को बरकरार रखती है।
सपा नेता अखिलेश यादव ने इसे लंबी लड़ाई बताया और सुरक्षा में किसी भी चूक की गुंजाइश को सिरे से खारिज किया। AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी भारत की सैन्य कार्रवाई का स्वागत करते हुए पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने की ज़रूरत पर बल दिया।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ की खास बात यही थी — सटीकता, परिपक्वता और नैतिकता। एयर स्ट्राइक्स में सिर्फ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, जबकि पाकिस्तानी मिलिट्री बेस और आम नागरिक क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित रहे।
ट्रिणमूल नेता अभिषेक बनर्जी और राजद के मनोज झा ने भी सेना की तारीफ करते हुए कहा कि यह ऑपरेशन भारत की मजबूती और जिम्मेदार व्यवहार का उदाहरण है। वहीं, CPI और CPM ने संयुक्त बयान में पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाए रखने की बात दोहराई ताकि ऐसे हमलों की पुनरावृत्ति न हो।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ भले ही एक सैन्य कार्रवाई थी, लेकिन इसका सबसे बड़ा असर भारत की लोकतांत्रिक राजनीति पर दिखाई दिया — जहां सत्तापक्ष और विपक्ष एकजुट होकर देश के हित में खड़े नज़र आए। यह सिर्फ पाकिस्तान को नहीं, दुनिया को भी यह बताने का तरीका था कि भारत आतंक के खिलाफ अकेला नहीं, बल्कि एकजुट है — राजनीतिक रूप से भी और सैन्य रूप से भी।