
पाहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद देशभर में उठी आवाज़ों के बीच विपक्षी दल अब एकजुट होकर सरकार से विशेष संसद सत्र की मांग करने जा रहे हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आरजेडी समेत कई विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर संसद में चर्चा कराने की मांग की है। अब इन दलों ने एक साझा पत्र पर हस्ताक्षर कर उसे सरकार को सौंपने की तैयारी शुरू कर दी है, ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दे पर एक व्यापक बहस हो सके।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले में 26 नागरिकों की जान गई, जिसके बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया। इसके बाद भी पाकिस्तान की ओर से पूंछ, राजौरी और उरी जैसे इलाकों में नागरिकों पर गोलाबारी की घटनाएं सामने आईं। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बात रखने के लिए सभी दलों के सांसदों को विदेश भेजा, लेकिन अब वक्त है कि देश की जनता को भी सरकार की रणनीति और कदमों की जानकारी दी जाए।
तृणमूल कांग्रेस की संसदीय बैठक मंगलवार को ‘संविधान सदन’ (पुरानी संसद भवन) के केंद्रीय कक्ष में हुई, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की विशेष सत्र की मांग का समर्थन किया। पार्टी की राज्यसभा उपनेता सागरिका घोष ने बताया कि सभी सांसदों ने मिलकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है, जिसमें 5 जून के बाद विशेष सत्र बुलाने की मांग की गई है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तृणमूल सांसदों ने हाल ही में पाकिस्तान की गोलीबारी से प्रभावित पूंछ, राजौरी और उरी का दौरा भी किया। इन दौरों के बाद विपक्ष ने एक सुर में कहा कि यह समय राजनीति का नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में एकजुटता दिखाने का है। साथ ही, उन्होंने सरकार से यह भी कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो भी घटनाक्रम हुए हैं, उस पर संसद में बहस जरूरी है।
स्वतंत्र सांसद कपिल सिब्बल ने 25 अप्रैल को सबसे पहले विशेष सत्र की मांग की थी, जिसे बाद में कांग्रेस, आरजेडी और तृणमूल ने समर्थन दिया। विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ अब एक साझा रणनीति के तहत प्रधानमंत्री को पत्र लिखने की तैयारी में है, ताकि संसद में यह विषय प्रमुखता से उठाया जा सके।
विपक्ष का कहना है कि वह आतंकी हमले के बाद से ही सरकार के साथ खड़ा है और विदेशी दौरों में भी एकजुटता दिखाई है। लेकिन अब संसद को भी इस विषय पर जानकारी दी जानी चाहिए, क्योंकि आम नागरिकों को यह जानने का पूरा अधिकार है कि सरकार आतंकवाद से निपटने के लिए क्या कदम उठा रही है।

