अगर सबको नेता बनने का हक है, तो मुसलमान क्यों नहीं?” — ओवैसी का तीखा हमला विपक्ष पर

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने विपक्षी दलों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की देशभर में जीत विपक्ष की नाकामी का नतीजा है, न कि AIMIM जैसी पार्टियों के मैदान में होने का।

हैदराबाद के पांच बार से सांसद ओवैसी ने कहा कि भाजपा ने देश के 50 प्रतिशत हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण कर लिया है और यही उसकी जीत का असली कारण है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए पूछा, “अगर मैं कुछ सीटों पर चुनाव लड़ता हूं और भाजपा को 240 सीटें मिलती हैं, तो क्या इसके लिए मैं ज़िम्मेदार हूं?”

विपक्ष के ‘B-टीम’ के आरोपों पर पलटवार करते हुए ओवैसी ने कहा कि यह महज उनकी पार्टी के प्रति नफरत है, खासकर इसलिए क्योंकि AIMIM मुस्लिमों की आवाज़ बनने की कोशिश कर रही है। उनका कहना है कि जब हर समाज को नेतृत्व करने का हक है, तो मुसलमानों को यह हक क्यों नहीं?

“जब यादव नेता हो सकता है, ब्राह्मण नेता हो सकता है, तो मुसलमान को क्यों भीख मांगने की स्थिति में रखा जा रहा है?” — यह सवाल करते हुए ओवैसी ने कांग्रेस, बसपा, सपा समेत सभी पार्टियों पर निशाना साधा।

उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक मानकर चलने वाली राजनीति अब खत्म होनी चाहिए। “हम सिर्फ वोटर नहीं बनना चाहते, हम नागरिक बनना चाहते हैं,” उन्होंने स्पष्ट किया।

दिलचस्प बात यह है कि यह बयान उस समय आया है जब ओवैसी को हाल ही में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ मुखर रुख के लिए सराहना भी मिली है। वे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर कड़ा रुख अपनाकर राष्ट्रीय विमर्श में एक निर्णायक आवाज़ बनकर उभरे हैं।

बावजूद इसके, वे यह भी दोहराना नहीं भूलते कि देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी — मुसलमान — आज भी संसद और विधानसभाओं में मात्र 4 प्रतिशत प्रतिनिधित्व रखती है। उनका कहना है कि 2047 तक विकसित भारत का सपना तब तक अधूरा रहेगा जब तक इस समुदाय को शिक्षा, नौकरी और समान अधिकार नहीं मिलते।

ओवैसी की कोशिश रही है कि AIMIM को हैदराबाद से बाहर भी एक मजबूत राजनीतिक विकल्प के तौर पर स्थापित किया जाए। बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मुसलमान बहुल इलाकों में पार्टी को मिली आंशिक सफलता इसका संकेत है।

“हमें सिर्फ चुनावी मोहरे नहीं, लोकतांत्रिक व्यवस्था के बराबरी के हिस्सेदार बनना है,” — यह ओवैसी की राजनीतिक सोच का मूल मंत्र बन चुका है, जो न सिर्फ उन्हें अलग पहचान देता है, बल्कि बहस का केंद्र भी बनाता है।

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