
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और चुनाव आयोग (ECI) के बीच एक बार फिर टकराव देखने को मिला है। राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर लगाए गए “मैच फिक्सिंग” के आरोपों पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया को सिरे से खारिज कर दिया है। शनिवार को X (पहले ट्विटर) पर उन्होंने EC को सीधे संबोधित करते हुए कहा कि “बिना हस्ताक्षर के जारी किए गए अस्पष्ट नोट्स” से आयोग की विश्वसनीयता नहीं बचेगी।
राहुल गांधी का कहना है कि यदि आयोग के पास छिपाने को कुछ नहीं है, तो उसे उनके लेख में उठाए गए सवालों का खुलकर जवाब देना चाहिए। उन्होंने मांग की है कि सभी राज्यों के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए समेकित, डिजिटल और मशीन-पठनीय वोटर लिस्ट सार्वजनिक की जाए और महाराष्ट्र में मतदान के बाद शाम 5 बजे के बाद की CCTV फुटेज भी जारी की जाए।
इस पूरे मामले ने उस समय और तूल पकड़ लिया जब चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को “पूरी तरह से निराधार” करार देते हुए उन्हें लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति “अनादर” बताया। आयोग का कहना है कि पूरी चुनाव प्रक्रिया—मतदाता सूची की तैयारी से लेकर वोटिंग और गिनती तक—सरकारी कर्मचारियों और राजनीतिक दलों के अधिकृत प्रतिनिधियों की निगरानी में होती है।
वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी आंकड़ों के जरिये आयोग से तीखे सवाल पूछे हैं। उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र में सिर्फ पांच महीनों में 41 लाख नए वोटर जुड़ गए, जबकि पिछले पांच वर्षों में ये संख्या महज 31 लाख थी। साथ ही उन्होंने पूछा कि कैसे मतदान का आंकड़ा 58.22% से बढ़कर अंतिम रूप में 66.05% तक पहुंच गया और इन बदलावों का फुटेज कहां है?
राहुल गांधी ने अपने लेख में चुनाव “चुराने की योजना” के पांच चरण गिनाए—EC की नियुक्ति में धांधली, फर्जी वोटर्स की एंट्री, वोटिंग प्रतिशत का फर्जीवाड़ा, ज़रूरत के हिसाब से बूथ टारगेटिंग और अंत में सबूत छिपाना। उन्होंने चेताया कि “महाराष्ट्र की मैच फिक्सिंग अब बिहार की ओर बढ़ रही है।”
चुनाव आयोग और कांग्रेस के बीच यह जुबानी जंग उस बड़े मुद्दे की ओर इशारा करती है, जिसे देश के लोकतंत्र की पारदर्शिता से जोड़ा जा रहा है। जहां एक ओर आयोग अपनी निष्पक्षता की दुहाई दे रहा है, वहीं विपक्ष लगातार संस्थानों की साख पर सवाल उठा रहा है।