शशि थरूर बोले – 1971 और आज के हालात में ज़मीन-आसमान का फर्क, अब टकराव प्राथमिकता नहीं

नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम को लेकर जहां कुछ हलकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना इंदिरा गांधी से की जा रही है, वहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इन तुलनाों को “ग़लत सन्दर्भ में किया गया प्रचार” बताया है। उन्होंने साफ़ कहा कि 1971 की जंग और आज की स्थिति बिल्कुल अलग हैं, और मौजूदा दौर में पाकिस्तान के साथ सैन्य टकराव को लंबा खींचना भारत की प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए।

थरूर ने कहा, “1971 में इंदिरा गांधी ने उपमहाद्वीप का नक्शा बदल दिया था। वो एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, लेकिन तब हालात अलग थे। बांग्लादेश एक नैतिक लड़ाई लड़ रहा था—स्वतंत्रता और मुक्ति की लड़ाई। उस समय भारत की कार्रवाई का स्पष्ट उद्देश्य था। लेकिन आज, सिर्फ गोले दागते रहना कोई समाधान नहीं है।”

उन्होंने आगाह किया कि यदि मौजूदा सैन्य तनाव को ज़्यादा खींचा जाता, तो दोनों ओर भारी जानमाल की क्षति हो सकती थी। “आज का पाकिस्तान अलग है। उनके पास अलग तरह के सैन्य संसाधन हैं और वे अलग स्तर का नुकसान पहुंचा सकते हैं।”

थरूर का यह बयान ऐसे समय आया है जब सोशल मीडिया पर इंदिरा गांधी की 1971 की सैन्य रणनीति की तुलना प्रधानमंत्री मोदी की ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद की नीति से की जा रही है। इस ऑपरेशन के तहत भारत ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादी ठिकानों पर निशाना साधा था।

इस राजनीतिक बहस के बीच कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी सोशल मीडिया पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तस्वीरें साझा करते हुए लिखा—“India misses Indira”—जिससे राजनीतिक माहौल और गर्मा गया।

उधर, भारत और पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों के बीच बातचीत के बाद शनिवार शाम 5 बजे से दोनों देशों ने ज़मीनी, समुद्री और हवाई हमलों को रोकने का निर्णय लिया। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इसकी पुष्टि की। हालांकि, कुछ घंटों के भीतर ही पाकिस्तान की ओर से संघर्षविराम उल्लंघन की खबरें सामने आईं। भारतीय सेना को स्थिति का “मज़बूत जवाब” देने के निर्देश दिए गए।

सीज़फायर की घोषणा ने भले ही क्षणिक राहत दी हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर मंथन जारी है। क्या यह ठहराव स्थायी होगा या सिर्फ एक अस्थायी विराम? यह देखना बाकी है।

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