
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि देश के सभी हाईकोर्ट जजों को अब समान पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ मिलेंगे, भले ही वे कब नियुक्त हुए हों या किस प्रक्रिया से नियुक्त हुए हों।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की गैरमौजूदगी में यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय “वन रैंक, वन पेंशन” सिद्धांत पर आधारित है और इससे न्यायपालिका में व्याप्त वर्षों पुरानी वेतन और पेंशन असमानता समाप्त होगी।
🧾 क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
- हाईकोर्ट के सभी सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों को ₹15 लाख सालाना और अन्य सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को ₹13.5 लाख सालाना पेंशन दी जाएगी।
- एडिशनल जजों और स्थायी जजों के बीच पेंशन के आधार पर अब कोई भेदभाव नहीं होगा।
- बार से नियुक्त और जिला न्यायपालिका से पदोन्नत जजों को एक ही मापदंड से पेंशन मिलेगी।
- नया पेंशन स्कीम (NPS) लागू होने के बाद नियुक्त जजों को भी पूरी पेंशन मिलेगी, राज्य सरकारें उनकी NPS राशि और रिटर्न केंद्र को लौटाएंगी।
- सेवा के दौरान दिवंगत हुए जजों के परिजनों को भी पूर्ण पेंशन और ग्रैच्युटी दी जाएगी।
📜 संविधान का आधार: अनुच्छेद 14 और 200
पीठ ने कहा, “सेवानिवृत्ति के बाद लाभों में कोई भी भेदभाव अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता का अधिकार सुनिश्चित करता है।” साथ ही, अनुच्छेद 200, जो हाईकोर्ट जजों की पेंशन से जुड़ा है, को भी ध्यान में रखते हुए यह निर्णय सुनाया गया।
⚖️ क्यों था यह फैसला जरूरी?
वर्तमान तक, हाईकोर्ट के एडिशनल जजों या जिला न्यायपालिका से आए जजों को पूरी पेंशन नहीं मिलती थी। यह न्यायपालिका के भीतर दोहरी व्यवस्था जैसा था — जो संविधान के मूल मूल्यों के खिलाफ है।
न्यायालय ने टिप्पणी की कि,
“सेवानिवृत्ति के बाद लाभों में भेद करना, एक समान सेवा देने वाले जजों के साथ अन्याय है। चाहे वे एडिशनल रहे हों, स्थायी या किसी भी स्रोत से आए हों – सभी को समान पेंशन मिलनी चाहिए।”
👨👩👧👦 परिवारों के लिए भी राहत
- दिवंगत न्यायाधीशों की विधवाओं या उनके आश्रितों को भी अब पूर्ण पारिवारिक पेंशन और अन्य लाभ मिलेंगे।
- चाहे जज स्थायी थे या एडिशनल, यह भेद अब समाप्त कर दिया गया है।
🔁 असर और संभावनाएं
इस निर्णय से देशभर में सैकड़ों सेवानिवृत्त जजों और उनके परिवारों को लाभ मिलेगा। साथ ही यह संदेश भी जाएगा कि न्यायपालिका के भीतर भी समानता और सम्मान के सिद्धांत सर्वोपरि हैं।
यह फैसला उस समय आया है जब देश में “वन रैंक, वन पेंशन” की अवधारणा को केवल सैन्य सेवाओं तक सीमित समझा जाता था। अब यह न्यायपालिका जैसे संवैधानिक संस्थान में भी लागू हुआ है — जो एक बड़ी नीतिगत मिसाल है।

