
अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा विदेशी छात्रों, खासतौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में नामांकन को लेकर उठाए गए कदमों से दुनियाभर में छात्र समुदाय हिल गया है। भारत पर इसका सीधा असर पड़ा है, क्योंकि हर साल लाखों भारतीय छात्र अमेरिका में उच्च शिक्षा के लिए जाते हैं। कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की चुप्पी को लेकर तीखी आलोचना की है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने बुधवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर निशाना साधते हुए कहा कि “चीन ने अपने छात्रों के हक़ में कड़ा रुख अपनाया है, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री पूरी तरह चुप हैं।” रमेश ने यह भी दावा किया कि राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को केवल चार दिनों में बंद करने की बात पर भी भारत सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में लगभग 3.37 लाख भारतीय छात्र अमेरिका गए थे और वर्तमान में अमेरिका की यूनिवर्सिटियों में एक तिहाई विदेशी छात्र भारतीय हैं। रमेश ने कहा कि इसका मतलब है कि लगभग साढ़े तीन लाख भारतीय परिवारों ने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए जमापूंजी खर्च की या कर्ज लिया। अब इन छात्रों का भविष्य अनिश्चित हो गया है।
ट्रंप प्रशासन द्वारा नए वीजा इंटरव्यू को रोकने, सोशल मीडिया वेटिंग को कड़ा करने और कुछ विश्वविद्यालयों को सीधे टारगेट करने के कारण भारतीय छात्रों में गहरी चिंता देखी जा रही है। खासकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को लेकर उठे विवाद, जहां ट्रंप प्रशासन ने विश्वविद्यालय पर “यहूदी विरोधी माहौल” और “रेसिस्ट डाइवर्सिटी पॉलिसीज़” का हवाला देते हुए विदेशी छात्रों और स्टाफ को प्रतिबंधित करने की दिशा में कदम उठाए हैं, उससे स्थिति और भी गंभीर हो गई है।
एनसीपी (शरद पवार गुट) के प्रवक्ता क्लाइड क्रास्टो ने भी केंद्र सरकार से “कड़े कदम उठाने” की मांग की है और कहा कि यह सिर्फ अमेरिका की नीति नहीं बल्कि भारतीय छात्रों की उम्मीदों और करियर से जुड़ा मसला है।
बात केवल शिक्षा की नहीं है, ये उन सपनों की भी है जो हजारों भारतीय परिवारों ने अपने बच्चों के साथ मिलकर देखे हैं। आज जब अमेरिका में स्थिति बदल रही है, तो सवाल यह उठता है कि क्या भारत सरकार इन छात्रों के हितों की रक्षा के लिए आवाज़ उठाएगी?